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For the Womenhood, straight from the heart!

By Jyoti Arora, New Delhi ( A Helping Brain )

एक आकृति यह भी……

औज़ार हो, हथियार नहीं,

आधार हो, विचार नहीं।

संपूर्ण हो, विदित नहीं,

वाणी हो, हूँकार नहीं।

स्वप्निल हो, धूमिल नहीं,

आँधी हो, ग़ुबार नहीं।

जलती लौ चिराग़ की,

तुम क्षमाशील हो कण-कण में।

उपेक्षा की अर्चन से,

कोई तु्म्हें दरकार नहीं।

तेज हो पराक्रम का,

है रिपु तुम्हारा अंधकार नहीं।

दर्पण हो, प्रत्यक्ष नहीं,

अनभिज्ञ हो, तिरस्कार नहीं।

संवेदना का जो अंबर है धारण,

है आवरण तुम्हारा लाचार नहीं।

हो त्याग की पराकाष्ठा तुम,

ग्लानि का संचार नहीं।

कहना हो कृति ईश्वर की,

करता कोई आभार नहीं।

दुर्गा के बल में चूँकि

ढलता यशोधरा का प्यार नहीं।

इसलिए लंकेश वन में भी

छीन सका जानकी का अधिकार नहीं।

तो क्यूँ हो आज सकुचाई सी,

निश्छल मन में भी स्पष्ट आकार नहीं।

नव-चेतना का यूँ आह्वान करो

कि गूँज हो, पुकार नहीं।

भोर हो सूक्ष्म अंशु की

और प्रकाश माँगे चित्रकार नहीं।